Monday 18 April 2016


 डर इंसान के जीवन का सबसे बड़ा पहलू  । हर कदम पर राह में रोड़ा बने हुए हमें आगे बढ़ने से रोकते हैं ।  कि किस तरह एक इंसान डर के साये में में अपनी उम्र निकाल देता है  ये और ये कहानी  चलती रहती है मौत के बाद भी, तो दोस्तों मेरी  इस  ब्लॉग  की दूसरी रचना उस डर के नाम  और मेरा विश्वास है की इस नज़म के अंत तक आप डरना  भूल  जायेंगे ।
 
                                                    डर 

             मै डरता हूँ डरने से मैं ,डरता हूँ मरने  से,
             मैं डरता हूँ जीतने से ,मैं डरता हूँ हारने से ,
             मैं डरता  तूफानों से  और डरता  भी सन्नाटों से,
                              इसी तरह मैं पल पल डरता हूँ , मैं पल पल मरता हुँ ,
                              मैं अंधेरों से डरता हूँ उजालों से भी  डरता हूँ। 
    और मेरे डरने की  हद तो देखो ,कभी डरता  हूँ  सच्चाई से ,
    कभी डरता हूँ अच्छाई से कभी-कभी तो खुद की परछाई से । 

   इसी तरह यूं ही डर-डर के जिया है ज़िन्दगी 
   और डर डर के हे दुनिया छोड़ जाऊँगा। 
   वैसे तो कुछ ले जाते नहीं है लोग इस दुनिया से यूं मरने के बाद ,
   लेकिन मैं अपने साथ डर ले जाऊँगा
   और वापस जब दुनिया में आऊंगा ,
   तो फिर डर -डर के ही  जीऊंगा 
  और शायद डर डर के ही  मर जाऊँगा ॥
                               
                                                                                                                - विजय नाग

Tuesday 5 April 2016

JANE YE KASH KAB KHATM HOGI . .

जाने ये काश कब ख़त्म होगी ,
युँ  मर मर के जीने की आस कब ख़त्म होगी,
जो चाहता हुँ  आसमां में उड़ना और हवाओं  में  तैरना ,
  जो है ये मुझमे प्यास तो  ये प्यास कब ख़त्म होगी
जाने ये काश कब ख़त्म होगी   ॥ 
जो चाहता हुँ ,खुले दिल से बोलना तो सोचता हुँ ,
काश मैं बोल पाऊँ ,जो छिपे सारे  राज़  अपने  दिल के खोल पाऊँ 
 जो चाहता हूँ लिखुँ  नज़्मे तो सोचता हुँ  कि काश मैं  लिख पाऊँ,
 और अपनी ही नज़्मों  से कुछ सीख पाऊँ ,
अगर है जो ये बकवास तो ये बकवास कब ख़त्म होगी,
 यूँ मर- मर के जीने की आस कब ख़त्म होगी
जाने ये काश कब ख़त्म होगी ॥